ये चन्दन यात्रा क्या है?
चंदन यात्रा वैशाख (अप्रैल – मई) महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को प्रारम्भ होती है और अगले इक्कीस दिनों तक चलती है। गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय में मान्यता है कि भगवान श्री जगन्नाथ जी (श्री कृष्ण) ने राजा इंद्रद्युम्न को इस विशेष उत्सव को मनाने का निर्देश दिया था। महाराज इन्द्रद्युम्न ने ही सत्य युग में, ओड़िसा में, पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर का निर्माण किया था।
भगवान के शरीर पर लेप लगाना अत्यंत भक्तिमय क्रिया है, और सर्वश्रेष्ठ लेप चंदन का लेप होता है। इसी कारण श्री कृष्ण जी की श्री मूर्तियों को चन्दन के शीतल लेप से सुसज्जित किया जाता है।
लेकिन वैशाख (अप्रैल – मई) में ही क्यों ?
क्योंकि वैशाख का महीना भारत में अत्यंत गर्म होता है, इसलिए चंदन की शीतलता भगवान श्री जगन्नाथ जी को बहुत भाति है। जगन्नाथ जी के पूरे शरीर पर चंदन का लेप लगाया जाता है, मात्र उनके कमल नयनों के अतरिक्त।
जगन्नाथ जी की उत्सव मुर्तियों (जिनका अभिषेक होता है) को जुलूस में ले जाया जाता है और मंदिर के तालाब में पूर्व-सुशोभित नाव में नौका विहार तथा जल क्रीड़ा कराई जाती है। इस उत्सव को मनाते हुए, जगन्नाथ पूरी में, श्री चैतन्य महाप्रभु जी ने अपने भक्तों के साथ जल क्रीड़ा भी की थी।
प्रथम बार कब मनाई गयी चन्दन यात्रा ?
कहा जाता है कि चंदन यात्रा उस दिन सबसे पहले मनाई गई थी जब त्रेता-युग शुरू हुआ था – यानि अक्षय तृतीया के अत्यंत शुभ दिवस पर। अतः चन्दन यात्रा अक्षय तृतीया से ही प्रारम्भ होती है। साधु-संत इस अति पवित्र अवसर पर, श्री हरि की प्रसन्नता हेतु, नाना प्रकार के होम (यज्ञ) संपन्न करते हैं।
अक्षय तृतीया का महत्व।
वैदिक शास्त्रों का कथन है कि अक्षय तृतीया अत्यंत शुभ मुहूर्त होता है| इतना शुभ की इस दिन कोई भी मांगलिक एवं शुभ कार्य करते हुए किसी भी मुहूर्त को देखने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि यह पूर्ण दिवस ही शुभ होता है।
जौं, जो हवन एवं यज्ञ के लिए मुख्य सामग्री में से एक है, उसका निर्माण भी इसी दिन हुआ था। भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर गंगा मैया भी अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर ही पृथ्वी पर अवतरित हुईं थीं। यही नहीं श्री हरि विष्णु जी ने परशुराम जी के रूप में इसी दिन अवतार लिया था।
अक्षय तृतीया के दिन अनुष्ठान एवं उनके लाभ।
इस परम-पावन दिवस पर
हमे ज्यादा से ज्यादा यज्ञ, दान और तपस्या करनी चाहिए।
कलि युग में यज्ञ है हरिनाम संकीर्तन। अतः ज्यादा से ज्यादा भगवान के दिव्य नामो का जप करना चाहिए। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
भगवान हरि की सेवा हेतु दान करना चाहिए और तपस्या करनी चाहिए।जो कुछ भी हम, अक्षय तृतीया के दिन, श्री हरि के भक्तों एवं श्री कृष्ण की प्रसन्नता हेतु दान करते हैं, वह हमें शाश्वत लाभ देता है तथा अनन्त काल तक उसका पुण्य शीर्ण नहीं होता। इसी कारण वश इस तिथि को अक्षय कहा गया है।
चन्दन यात्रा तथा एक उत्कृष्ट सन्यासी श्रील माधवेन्द्र पुरी
श्री चैतन्य-चरितामृत, मध्य-लीला, अध्याय चार में परमहंस वैष्णव श्रील माधवेन्द्र पुरी जी की चन्दन यात्रा से जुड़ी एक रोचक कथा का वर्णन है। उल्लेख है कि श्रील माधवेंद्र पुरी जी ने गोवर्धन पर्वत के शीर्ष पर श्री गोपाल जी को एक भव्य मंदिर में स्थापित किया, तत्पश्चात श्री गोपाल जी की आज्ञा अनुसार पैदल यात्रा कर उन्हें चन्दन एवं कपूर के लेप लगाने हेतु जगन्नाथ पूरी से चन्दन की लकड़ी एवं कपूर, गोवर्धन (वृन्दावन) लाने का संकल्प किया। श्री गोपाल जी ने उनको स्वप्न में ऐसा करने का आदेश दिया था क्योंकि गोपाल जी को बहुत गर्मी सता रही थी।
श्रील माधवेन्द्र पुरी वृन्दावन से जगन्नाथ पुरी जाते हुए एक रेमुना नामक गाँव पहुंचे जहाँ उन्हें गोपीनाथ जी के मंदिर में अत्यंत उत्कृष्ठ अमृत केलि नाम से प्रसिद्ध खीर प्रसाद ग्रहण करने का सौभाग्य मिला। भक्ति भाव के कारण उन्हें लगा कि यदि थोड़ी सी खीर एक बार और चख लेते तो वैसी ही खीर का भोग गोवर्धन पर स्थित मंदिर में गोपाल जी के लिए पकाते। अत्यंत विनम्र होने के कारण उन्हें लगा कि ऐसा विचार करना ठीक नहीं है (जबकि विचार में कोई त्रुटि थी ही नहीं) इसलिए वह इस विचार की अशुद्धि को दूर करने हेतु हरिनाम का जप करने लगे।
यह देख भगवान श्री गोपीनाथ जी ने रेमुना मंदिर में अपने भक्त (श्रील माधवेन्द्र पूरी जी) के लिए एक कटोरी खीर परदे के पीछे छिपा ली, तथा पुजारी के स्वप्न में आकर कहा की चुराई हुई खीर उनके भक्त (माधवेन्द्र पुरी जी) को ही देना। पुजारी ने शीग्र बाज़ार में जाकर उद्घोषणा की कि माधवेन्द्र पुरी नामक भक्त गोपीनाथ जी द्वारा चुराई खीर को स्वीकार करें।
माधवेन्द्र पुरी ने खीर स्वीकार तो की ही साथ ही मिट्टी के पात्र को भी तोड़ कर अपने साथ रख लिया तथा प्रतिदिन उसी पत्र को ग्रहण कर अत्यंत भक्तिमय भावों का आस्वादन किया। गोपीनाथ के पुजारी समेत सभी ग्राम निवासी माधवेन्द्र पुरी का गुणगान करने लगे, अपनी प्रशंसा सुन माधवेन्द्र पुरी जी ने शीघ्र जगन्नाथ पूरी प्रस्थान करना उचित समझा ताकि लोक प्रसिद्धि से दूर रह सकें।
समाचार जगन्नाथ पूरी तक भी जा पंहुचा था की एक सन्यासी आ रहे हैं जिनके लिए गोपीनाथ जी ने स्वयं खीर पात्र चुरा लिया था। माधवेन्द्र पूरी जी का जगन्नाथ पूरी में भव्य स्वागत हुआ तथा उन्हें उत्कृष्ट चन्दन की लकड़ी एवं कपूर के साथ साथ यात्रा में उपयोगी सामग्री भी पुरी के भक्तों से प्राप्त हुई।
जगन्नाथ पूरी से चन्दन की लकड़ी एवं कपूर लेकर लौटते समय पुनः माधवेन्द्र पूरी जी ने गोपीनाथ मंदिर में विश्राम किया। प्रभु कृपा से श्री गोपाल जी ने उनके स्वप्न में आकर आदेश दिया की क्योंकि गोपीनाथ जी और उनमें (गोपाल जी) में कोई अंतर नहीं है इसलिए वह गोपीनाथ जी को ही चन्दन कपूर का लेप लगाएं। ऐसा करने से गोपला जी को ही शीतलता का अनुभव होगा। माधवेन्द्र पूरी जी ने प्रभु के आदेश का पालन करते हुए गोपीनाथ मंदिर के पुजारियों द्वारा गोपीनाथ को अत्यंत हर्षोल्लास से चन्दन अर्पित किया।
उपसंहार
हमारी आप सभी से प्रार्थना है कि अक्षय तृतीया एवं चन्दन यात्रा के महा-महोत्सव का श्री हरि के नाम, रूप, गुण एवं लीलाओं को स्मरण कर पूर्ण लाभ उठाएं एवं अपने आध्यात्मिक तथा भौतिक जीवन को श्री कृपा से ओत-प्रोत कर लें।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
वैभव आनंद दास
लेखक के बारे में : वैभव के पास भारती विद्यापीठ विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, पुणे से बी.टेक (आई.टी.) की डिग्री है। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी, नगारो सॉफ्टवेयर, के साथ ऍस.ए.पी. टेक्निकल लीड है तथा इन्हें आई.टी. औद्योगिक जगत में 11 वर्षों का समग्र अनुभव है। भगवद गीता, श्रीमद् भागवतम, वैदिक ब्रह्मांड की संरचना, मृत्यु के पश्चात् जीवन, संस्कार, चेतना अध्ययन, गरुड़ पुराण आदि उनकी गहरी रुचि के क्षेत्र हैं।