जह्नु सप्तमी – महत्व एवं महिमा – वैभव आनंद दास

//जह्नु सप्तमी – महत्व एवं महिमा – वैभव आनंद दास

जह्नु सप्तमी – महत्व एवं महिमा – वैभव आनंद दास

जह्नु सप्तमी – महत्व एवं महिमा

भागीरथी एवं भागीरथ:
भारतवर्ष में भागीरथ महाराज की कथा अत्यंत प्रचलित है। विशेषकर उत्तर भारत में, परोक्ष रूप से, प्रायः सभी भारतवासियों को गंगा मैया के अवतरण की कथा कंठस्थ है कि किस प्रकार भागीरथ महाराज की कठिन तपस्या के परिणाम स्वरुप गंगा मैया जेष्ठ (मई – जून) शुक्ल पक्ष में दशमी के पावन दिवस पर अवतरित हुईं। यह दिन गंगा दशहरा के नाम से अत्यंत प्रचलित है। इसी कारण गंगा को भागीरथी भी पुकारा जाता है।

जह्नु मुनि, जाह्नवी एवं भागीरथ:
इसी कथा से जुड़ी एक और कथा का भी वर्णन वैदिक शास्त्रों में निहित है, जो हमें ज्ञात करता है कि किस प्रकार गंगा मैया का नाम जाह्नवी हुआ। श्रीमद भागवतम के अनुसार, जब गंगा मैया भागीरथ महाराज के पूर्वजों को शुद्ध करने हेतु उनके रथ के पीछे अत्यंत वेग से अग्रसर थीं। तभी गंगा के पवित्र जल की धाराओं ने, नवद्वीप में गायत्री ध्यान में लीन, जह्नु मुनि के कमंडल, आचमन पात्र को बहा दिया एवं उनकी पूजा सामग्री तथा आश्रम को भी अपने जल में समाहित कर लिया। गंगा के पवित्र जल के अत्यंत वेग के कारण जह्नु मुनि की तपस्या भंग हो गई।

क्रोधित जह्नु मुनि ने उसी क्षण, अपना मुख खोल, गंगा का पूरा जल एक ही घूँट में पी कर अपने उदर में बांध लिया तथा तपस्या में पुनः बैठ गए। गंगा के जल की ध्वनि न आने के कारण भागीरथ महाराज अत्यंत चिंतित हो गए। उन्हें अपने पूर्वजों के उद्धार की अत्यंत कामना थी और यदि गंगा मैया उनके पूर्वजों की अस्थियों को अपने जल में समाहित नहीं करतीं तो उनके पूर्वजों का उद्धार नहीं हो पता।

भागीरथ महाराज ने तत्क्षण यह ज्ञात करने की चेष्टा की कि किस कारण गंगा मैया अदृश्य हो गयीं हैं। उन्होंने जह्नु मुनि को तपस्या करते देख यह समझ लिया की अवश्य ही मुनिवर ने गंगा मैया को ग्रहण कर लिया है। भागीरथ महाराज ने जह्नु मुनि की प्रसन्नता हेतु कड़ी तपस्या की तथा उनको अपनी विनम्र से और प्रार्थनाओं से संतुष्ट कर दिया।

भागीरथ महाराज की, अपने पूर्वजों के प्रति, श्रद्धा देख जह्नु मुनि ने गंगा मैया को अपनी जांघ से प्रकट कर दिया। कारणवश गंगा मैया एक और नाम, जाह्नवी (जह्नु मुनि की सुपुत्री) से तीनों लोकों में प्रसिद्ध हो गयीं। क्योंकि यह प्रकरण वैशाख (अप्रैल-मई) शुक्ल पक्ष, सप्तमी को घटित हुआ था अतः इसे गंगा सप्तमी या जह्नु सप्तमी के नाम से जाना जाता है।

श्री नवद्वीप माहात्म्य ग्रन्थ में जह्नु मुनि का वर्णन:
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर श्री नवद्वीप माहात्म्य के अध्याय १३ में विद्यानगर एवं जह्नुद्वीप का वर्णन करते हैं। वह लिखते हैं, श्रीमान नित्यानंद ने कहा, “वे जननगर गए जहां उन्होंने जह्नु मुनि के मनमोहक आश्रम को देखा”। नित्यानंद प्रभु ने समझाया, “जह्नुद्वीप नामक इस सुन्दर स्थल को भद्रावन के नाम से जाना जाता है। इस स्थान पर जह्नु मुनि ने तपस्या की तथा श्री गौरांग महाप्रभु के स्वर्ण रूप का दर्शन प्राप्त किया।”

जह्नु मुनि एवं परशुराम जी:
श्रील प्रभुपाद जी ने श्रीमद भागवत के नौवे स्कन्द के पन्द्रवें अध्याय को सारगर्भित करते हुए बताया है की किस प्रकार जह्नु महाराज एवं भगवान परशुराम एक ही वंश में प्रकट हुए थे।

श्रीमद भागवतम नौवां सर्ग अध्याय पंद्रह – सारांश श्रील प्रभुपाद जी द्वारा:
“उर्वशी के गर्भ से आयु, श्रुतायु, सत्यायु, रय, जय और विजय नाम के छह पुत्र हुए। श्रुतायु के पुत्र वसुमान, सत्यायु के पुत्र श्रुतंजय, रय के पुत्र एक, जय के पुत्र अमित तथा विजय के पुत्र भीम हुए।

भीम के पुत्र का नाम कांचन था, कांचन के पुत्र होत्रक थे और होत्रक के पुत्र जह्नु महाराज थे, जो एक घूंट में गंगा का सारा पानी पीने के लिए विख्यात हैं। जह्नु के वंशजों के नाम क्रमशः पुरु, बलाक, अजक और कुश थे।

कुश के पुत्र कुशाम्बु, तनय, वसु और कुशनाभ थे। कुशाम्बु से गाधि आए, जिनकी सत्यवती नाम की एक बेटी थी। सत्यवती ने ऋचीक मुनि से विवाह किया, और ऋचीक मुनि द्वारा सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि जी का जन्म हुआ। जमदग्नि के पुत्र राम या परशुराम थे जो भगवान विष्णु के शक्त्यावेश अवतार थे।

निष्कर्ष:
जह्नु सप्तमी के अत्यंत शुभ अवसर पर हम श्रीमद् भगवतम नवमे स्कंद से गंगा के प्राकट्य की कथा अध्ययन कर सकते है। मां गंगा की महिमा का श्रवण, कीर्तन, स्मरण कर सकते है। अगर संभव है तो गंगा स्नान कर सकते है। श्री चैतन्य महाप्रभु ने गंगा का गुणगान कई स्थानों पर किया है। गंगा में अनेक लीलाएं की है।
गंगा माता हमे भगवान हरि की शुद्ध भक्ति प्रदान कर सकती है।
जह्नु द्वीप नवद्वीप मंडल के नौ द्वीपों में से एक द्वीप है। नवद्वीप मंडल की मानसिक रूप से परिक्रमा विशेषकर आज कर सकते है।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

वैभव आनंद दास


लेखक के बारे में : वैभव के पास भारती विद्यापीठ विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, पुणे से बी.टेक (आई.टी.) की डिग्री है। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी, नगारो सॉफ्टवेयर, के साथ ऍस.ए.पी. टेक्निकल लीड है तथा इन्हें आई.टी. औद्योगिक जगत में 11 वर्षों का समग्र अनुभव है। भगवद गीता, श्रीमद् भागवतम, वैदिक ब्रह्मांड की संरचना, मृत्यु के पश्चात् जीवन, संस्कार, चेतना अध्ययन, गरुड़ पुराण आदि उनकी गहरी रुचि के क्षेत्र हैं।

2023-05-10T06:55:22+00:00

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