नमस्ते नरसिंहाय

//नमस्ते नरसिंहाय

नमस्ते नरसिंहाय

सामान्यतया भगवान, श्री हरि विष्णु, अति सुन्दर एवं मनमोहक रूपों में ही अवतार लेते हैं। यही नहीं भगवत अवतारों की लीलाएं भी अत्यधिक निर्मल एवं प्रसन्नता प्रदान करने वाली होती हैं। परन्तु श्री हरि का नरसिंह अवतार आश्चर्यपूर्ण, अद्भुत, अविश्वनीय एवं अकल्पनीय होने के साथ-साथ भयावह भी प्रतीत होता है। प्रथम दृष्टि में तो कई सज्जन यह समझ नहीं पाते की इतना बिभत्स रूप भगवान का कैसे हो सकता है जो न पूर्णतया मनुष्य रूप है न ही पूर्ण सिंह।

यही नहीं वैष्णव आचार्यगण तो इस अद्भुत रूप की प्रसंशा करते नहीं थकते और तो और उत्तम कीर्तन के रूप में ‘नमस्ते नरसिंहाय’ का भजन भी विश्व के कितने ही मंदिरों में प्रातः काल गुंजायमान होता है।

तो क्यों लिया भगवान् ने भयानक अवतार?

समाज में प्रति व्यक्ति की यह अभिलाषा रहती है की जो कोई भी उनके संपर्क में आएं वह उनके विषय में अच्छे विचार अपने मन में रखे। हम सभी समाज से अपने रूप एवं विभिन्न क्षमताओं की प्रसंशा ही सुनना चाहते है। परन्तु श्री हरि स्यामसुंदर गोपाल यह बता रहे हैं कि सर्वाधिक रूपवान तथा आकर्षक होने के बाद भी, वह ऐसा एक रूप भी धारण कर सकते हैं जिस रूप को देख समाज या तो निंदा करे या भयभीत हो उठे या नाना प्रकार के प्रश्न पूछे या फिर स्तब्ध ही क्यों न रह जाए।

परतुं यदि ऐसा आश्चर्यजनक अथवा भयानक रूप, जो न नर प्रतीत हो न की सिंह, उनके भक्तों के वचनों की सत्यता को स्थापित कर दे, तो श्री हरि विष्णु को ऐसे नरसिंह रूप को धारण करने में लेश मात्र भी संकोच नहीं हैं।

श्रीमद भागवत महापुराण ७.८.१७ में इसी सुन्दर विचार का वर्णन आता है:

सत्यं विधातुं निजभृत्यभाषितं
व्याप्तिं च भूतेष्वखिलेषु चात्मन: ।
अद‍ृश्यतात्यद्भ‍ुतरूपमुद्वहन्
स्तम्भे सभायां न मृगं न मानुषम्

अर्थात: अपने प्रिय भक्त बालक प्रह्लाद के वचनों को सत्य साबित करने हेतु (कि भगवान विष्णु सृष्टि के कण-कण में विद्यमान हैं) तथा ब्रह्मा जी के वचनों का मान रखने के लिए, श्री हरि कृष्ण ने एक ऐसा रूप धारण किया जो पहले कभी नहीं देखा गया। यह आश्चर्यजनक रूप न मनुष्य का था न ही पूर्णतया सिंह का। इस नरसिंह रूप में भगवान, हिरण्यकशिपु का वध करने एवं प्रह्लाद को संरक्षण प्रदान करने हेतु, राज सभागार में स्तम्भ से प्रकट हो गए।

नमः शब्द का अर्थ:

अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इसकॉन) के मंदिरों में आरती के समय श्री नरसिंह प्रणाम मंत्र का सुन्दर एवं मनमोहक कीर्तन किया जाता है। नरसिंह प्रणाम की पहली दो पंक्तियाँ इस प्रकार है:

नमस्ते नरसिंहाय
प्रह्लादाह्लाद-दायिने

अर्थात: हे नरसिंह देव हम आपको नमस्कार करते हैं। आप प्रह्लाद को हर्ष एवं प्रसन्नता प्रदान करने वाले हैं।

इस आरती का पहला शब्द (नमः ते या नमस्ते) सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। ‘नमः ते’ या ‘नमस्ते’ शब्द का अर्थ है ‘मेरा (‘मः’) कुछ नहीं (‘न’) सब आपका (‘ते’) है’। दूसरे शब्दों में ‘नमस्ते नरसिंहाय’ का अर्थ हुआ कि, ‘हे नरसिंह देव इस संसार में मेरा कुछ भी नहीं है, सब आपका ही है’। भक्त प्रह्लाद की यही अभिमान रहित भावना नरसिंह देव को अति प्रिय है।

पद्म पुराण के उत्तर खंड में भी, स्वयं को भगवान के समक्ष प्रस्तुत करने का वर्णन भी किया गया है। आठ अक्षरों वाले मंत्र में नमः शब्द की व्याख्या भी की गयी है:

अहंकृति म-कारः स्यान न-कारस तन-निषेधक:
तस्मात् तु मनसा क्षेत्रि स्वातंत्र्यं प्रतिष्ठाते
भगवत-परतंत्रोसौ तद-आयतत्म-
जीवन: तस्मात् स्व-सामर्थ्य विधिम त्यजेत सर्वं अशेषत: ईश्वरस्य तु सामर्थ्यान नालभ्यं
तस्य विद्यते तस्मिन्न्यास्त
-भर: सेते तत्-कर्मैव समाकरेत
(पद्म पुराण ६.२२६.४१, ४४-४६)

अर्थात: नम: शब्द में, शब्दांश ‘मा’ अहंकार (अहंकृति) को संदर्भित करता है, और शब्दांश ‘न’ का अर्थ उसी अहंकार का निषेध (तन-निषेधका) है। इसलिए, नमः शब्द सांसारिक स्वतंत्रता की झूठी भावना (स्वातंत्र्य) के प्रति जीव के त्याग को इंगित करता है। जीव भगवान (पारतंत्र्य) पर निर्भर है। वास्तव में, जीव का अस्तित्व पूरी तरह से भगवान की शरण में होना है। इस प्रकार उसे भगवान से अलग अपनी स्वयं की प्रवीणता (स्व-सामर्थ्य) के भाव को सभी प्रकार से त्याग देना चाहिए। ईश्वर की सर्वशक्ति (सामर्थ्यान) से ऐसे व्यक्ति के लिए कुछ भी अप्राप्य नहीं है। भगवान् की शरण में आकर सभी चिन्ताओं से मुक्त होकर उनकी तुष्टि के लिए ही कर्म करना चाहिए।

उपसंहार: भगवान नरसिंह का रूप आम जनमानस के लिए चुनौती है। भगवान दर्शाते हैं कि प्रह्लाद महाराज जैसे वैष्णवों के वचनों का मान रखने हेतु वह एक भयानक रूप में भी प्रकट हो सकते है बिना अपने रूप के विषय में विचार किये। अतः हमें भी अपने जीवन में श्रील प्रभुपाद (इसकॉन के संथापकाचार्य) एवं अन्य वैष्णवों के वचनों को सर्वोच्च महत्त्व देना चाहिए ताकि हमारी आध्यात्मिक उन्नति सुनिश्चित हो जाए तथा अपने अहंकार का त्याग कर भगवान श्री हरि के समक्ष अपने को प्रस्तुत कर उनकी सेवा में रत रहना चाहिए। और भगवत सेवा का सबसे सरल उपाय उनके पवित्र नामों का जप एवं कीर्तन है।

हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।।

आप सभी को सपरिवार नरसिंह चतुर्दशी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

श्री नरसिंह देव के स्मरण का अभिलाषी
वैभव आनंद दास


लेखक के बारे में : वैभव के पास भारती विद्यापीठ विश्वविद्यालय, प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, पुणे से बी.टेक (आई.टी.) की डिग्री है। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी, नगारो सॉफ्टवेयर, के साथ ऍस.ए.पी. टेक्निकल लीड है तथा इन्हें आई.टी. औद्योगिक जगत में 11 वर्षों का समग्र अनुभव है। भगवद गीता, श्रीमद् भागवतम, वैदिक ब्रह्मांड की संरचना, मृत्यु के पश्चात् जीवन, संस्कार, चेतना अध्ययन, गरुड़ पुराण आदि उनकी गहरी रुचि के क्षेत्र हैं।

 

उद्धृत संदर्भ: https://www.youtube.com/watch?v=mXa8Oysh0mw&t=1048s

2023-05-30T11:46:33+00:00

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