Ram, Lakshman, Bharat, Shatrughan Naam ka kya Arth hai?

//Ram, Lakshman, Bharat, Shatrughan Naam ka kya Arth hai?

Ram, Lakshman, Bharat, Shatrughan Naam ka kya Arth hai?


हम सब जानते हैं कि भगवान के अनंत नाम हैं जैसे कि कृष्ण , राम , विष्णु , केशव , आदि। इन प्रमुख नाम के अतिरिक्त भगवान श्री कृष्ण को विभिन्न धर्म के लोग अपनी भाषा अनुसार अल्लाह, इलोहीम, याहवेह, ब्रह्मज्योति अथवा बुद्ध, आदि कह कर सम्भोदित करते है |इस लेख में हम विशेष रूप से भगवान के राम अवतार की चर्चा करेंगे और जानेंगे कि भगवान के चतुर्व्यूह अवतार जैसे राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का अर्थ क्या है|

राम शब्द का अर्थ क्या है?
महाराजा दशरथ के घर चार पुत्रों का जन्म हुआ |उन्होंने वशिष्ट मुनि को पुत्रों के नामकरण संस्कार के लिए आमंत्रित किया |जैसे ही वशिष्ट मुनि ने पहले बच्चे को देखा तो उनके मुख से निकला ‘राम’ नाम |कहते हैं कि ऐसा लगा जैसे वशिष्ट मुनि ने नाम नहीं चुना बल्कि स्वयं नाम उनकी जिहवा पर प्रकट हो गया हो |

राम शब्द का अर्थ है सर्वोत्तम आनंद|और यह नाम लेते ही वशिष्ट मुनि बहुत प्रसन हुए | भगवान राम जब तक इस पृथ्वी पर प्रकट रहे वे सबको परम आनंद प्रदान थे | इस आनंद का आधार था केवल प्रेम|यदि आनंद का आधार प्रेम न हो तो वह आनंद नही अपितु केवल आनंद की छाया है|प्रेम से ही आनंद मिलता है और भगवान राम अपनी प्रजा से असीम प्रेम करते थे और उनकी प्रजा भी उनसे उतना ही प्रेम करती थी| भगवान राम का सुन्दर रूप, उनका अमल आचरण सदा ही लोगों की प्रसन्ता का कारण बनते थे|

भरत शब्द का अर्थ क्या है?

वैदिक संस्कृति में बच्चों को जो नाम दिए जाते थे उनका कुछ अर्थ अवश्य होता था|भरत शब्द का अर्थ है “भगवान की सेवा लिए असीमित भार उठाने की क्षमता|” श्रीमद् रामायण में हम पढ़ते हैं कि जब श्रीराम वनवास को जाते हैं तो भरत जी को राज सौंपते है|भरत शब्द का एक अर्थ यह भी है कि अपने भाई रूपी भगवान के बिना उनको राज्य, सम्पति, और अपना जीवन एक अवांछित भार के समान लगा| शास्त्र हमें यह भी बताते है कि भरत जी किसी का भी भार अथवा बोझा उठाने को तैयार हैं और हमेशा सेवा के लिए आतुर है|

लक्ष्मण शब्द का अर्थ क्या है?
लक्ष्मण शब्द का अर्थ है जिसके पास लक्ष्मी अथवा धन है| लक्ष्मण जी भी विष्णु तत्त्व है और शेषनाग है|लक्ष्मण जी का धन श्री राम जी की सेवा ही है |जब भगवान राम वनवास को जाते है तो लक्ष्मण जी को सुमित्रा माता कहती हैं कि तुम्हारा जन्म राम जी की सेवा के लिए ही हुआ है इसलिए श्रीराम और सीता जी के साथ जाने के उनके निर्णय को माता सुमित्रा उचित बताती हैं|हम संपूर्ण रामायण में देखते हैं कि लक्ष्मण जी सदैव रामजी के निकटम रहकर उनकी सेवा करते हैं|

शत्रुघ्न शब्द का अर्थ क्या है?
शत्रुघ्न का अर्थ है जिसने अपने शत्रु का हनन कर दिया हो|लेकिन हम देखते हैं कि रामायण में मुख्यता राम जी लक्षमण जी ही असुरों का संघार करते हैं|इस सन्दर्भ में कहा जाता है कि शत्रुघ्न जी ने मन के ६ विकार या शत्रु – काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह, और मात्सर्य पर विजय पाई|

हम राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघन जी से क्या सीख सकते हैं?
राम जी स्वयं वासुदेव हैं। वह हमें अपने अद्भुत गुण, लीला और आध्यात्मिक दुनिया के रसों को दिखाने के लिए प्रकट होते है। उनका चरित्र अमल है इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है | वास्तव में, हम में से हर एक को अपने चरित्र में भगवान राम के सभी अच्छे गुणों को आत्मसात करने का प्रयास करना चाहिए।

रामायण में लक्ष्मण जी से हम क्या सीख सकते हैं?
लक्ष्मण जी भगवान विष्णु के पहले विस्तार हैं। वह आदि संकर्षण हैं | रामायण में, हम देख सकते हैं कि कैसे वह भगवान राम से स्नेह करते है, जैसे एक शिशु गर्भनाल द्वारा अपनी माँ से जुड़ा होता है। उन्होंने कभी भगवान राम को नहीं छोड़ा और इसी तरह हमें हमेशा भगवान राम को याद करना चाहिए और भगवान राम को कभी नहीं भूलना चाहिए।

रामायण में भरत जी से हम क्या सीख सकते हैं?
भारत महाराजा प्रद्युम्न नामक भगवान विष्णु का तीसरा विस्तार हैं । रामायण में, वह भगवान राम के भक्त की भूमिका निभाते हैं। जहां एक ओर लक्ष्मण जी ने भगवान के प्रति लगाव को प्रदर्शित किया, वहीं दूसरी ओर भरत जी ने भगवान के दर्शन नहीं होने पर एक भक्त की क्या स्थिति होती है, यह दर्शाया |एक भक्त को भगवान की सेवा कैसे करनी चाहिए उन्होंने हमें सिखाया । ईश्वर की अनुपस्थिति में ईश्वर के राज्य के प्रबंधन से संबंधित उनकी गतिविधियाँ इस बात का एक आदर्श उदाहरण हैं कि हमें भौतिक दुनिया के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए। हमारी नौकरी, परिवार, दोस्त, कर्तव्य, जिम्मेदारियां, आदि सभी हमें भगवान द्वारा दिए गए हैं और वास्तव में भगवान राम इन सभी चीजों के मालिक हैं जो हमारे पास हैं। हमें अपनी दिनचर्या में इस चेतना को बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए और अपनी भूमिकाओं के साथ आगे बढ़ना चाहिए ।

रामायण में शत्रुघ्न जी से हम क्या सीख सकते हैं?
महाराजा शत्रुघ्न भगवान विष्णु के चौथे विस्तार अनिरुद्ध हैं। रामायण के विभिन्न संस्करणों के गहन अध्ययन के बाद, कोई भी गलत निष्कर्ष निकाल सकता है कि भरत महाराजा का समर्थन करने के अलावा, शत्रुघ्न जी का महाकाव्य रामायण पर कोई प्रभाव नहीं था। वैदिक शास्त्र हमें बताते हैं कि शत्रुघ्न महाराज ने आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया। वह हमें सिखाते हैं कि भक्त की सेवा कैसे करें। इस मामले में उन्होंने अपना सारा जीवन महाराजा भरत की इच्छाओं को पूरा करने में लगा दिया जो भगवान राम की सेवा में तल्लीन थे। इसी तरह, हमें प्रभु के भक्तों की सेवा करने के लिए उत्सुक होना चाहिए।

आध्यात्मिक गुरु की विनम्र सेवा से व्यक्ति सिद्धि प्राप्त कर सकता है।

उनके मार्गदर्शन में हम आध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त कर सकते है।

भगवान के भक्तों की इस सेवा का दूसरा पहलू यह है कि व्यक्ति को सेवा का श्रेय लेने के लिए उत्सुक नहीं होना चाहिए। संपूर्ण रामायण इस सिद्धांत का प्रमाण है। राम और लक्ष्मण वन गए, जबकि भरत महाराजा स्व-निर्वासन में रहे। इस समय के दौरान, महाराजा शत्रुघ्न भगवान राम की अयोध्या नगरी के रखरखाव में जुटे रहे और यह सब उन्होंने महाराजा भरत के मार्गदर्शन के अंदर किया। परन्तु कहीं भी उनके इस श्रम का उल्लेख विस्तार से नहीं आता|यह स्वाभाविक है कि यदि हम कोई कार्य करें तो हमें उससे उत्पन्न ख्याति की लालसा हो|यह लालसा हमें भगवान से दूर ले जाती है|परन्तु यहाँ हमारे समक्ष एक उदाहरण है कि किस प्रकार से महाराज शत्रुघ्न जी ने एक भक्त की पूरे हृदय से सेवा करी और अपने गुणगान में कोई रूचि नहीं दिखाई|

मुझे विश्वास है कि यह लेख महाराजा दशरथ के चार बेटों के माध्यम से जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझने में उपयोगी होगा।

Madhurima Pundit

2020-10-26T11:38:14+00:00

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